Tuesday 24 July 2012

कांवरियों पर हमला


कांवरियों पर हमला


बरेली : कांवर में लाउडस्पीकर बजाने को लेकर रविवार(22-jul-2012) की शाम को दो समुदाय आमने-सामने आ गए। शाहबाद में एक धार्मिक स्थल के पास एक पक्ष के लोगों ने कांवरियों पर हमला बोल दिया। कांवर में तोड़फोड़ की और मारपीट कर जल फेंक दिया। तुरंत बाद मठ की चौकी के पास कांवरियों पर फायरिंग कर दी गई। फायरिंग में दर्जन भर से ज्यादा कांवरिये घायल हो गए।

कांवर तोड़ने और कांवरियों पर फायरिंग की खबर फैलते ही शहर में तनाव हो गया। देखते ही देखते बड़े हिस्से में दंगा भड़क गया। बाद में शहामतगंज में भी पुलिस ने फायरिंग की। उपद्रव में रवड़ीटोला के इमरान की मौत हो गयी। जिसकी जिला प्रशासन ने देर रात पुष्टि भी कर दी। बदायूं रोड पर आगजनी कर एक टेंपो, तीन खोखे फूंक दिए। बासमंडी में एक स्कूटर को आग लगा दी। शहामतगंज में फल और सब्जी मंडी की कई दुकानें फूंक दी गई। इससे पूर्व आंवला में भी कांवरियों पर हमला बोला गया लेकिन पुलिस ने स्थिति संभाल ली।

देर रात में डीएम ने शहर के कुछ हिस्सों में क‌र्फ्यू घोषित कर दिया। आरआरएफ और पीएसी ने भी पहुंचकर मोर्चा संभाला। शहामतगंज में पीएसी ने उपद्रवियों पर फायरिंग भी की। देर रात तक अधिकारी भारी फोर्स समेत सड़कों पर डटे रहे। एसपी सिटी समेत पांच सिपाही गोली लगने से घायल हो गए। शहर में घटना शाहबाद में एक धार्मिक स्थल के पास से शुरू हुई। शाम करीब सवा सात बजे कांवरियों का जत्था कोहाड़ापीर से शाहबाद चौकी के पास विभूती नाथ मंदिर की ओर आ रहा था। रास्ते में एक धार्मिक स्थल के पास कुछ लोगों ने कांवरियों से डेक व लाउडस्पीकर बंद करने को कहा।

इसी बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच कहासुनी के बाद मारपीट हो गई। आरोप है कि एक पक्ष ने कांवरियों की कांवर तोड़ दी और उनका जल फेंक दिया। इसी बात पर दोनों ओर से जमकर पथराव हुआ। मारपीट में एक कांवरिया दीपक कश्यप को चोट आई। उपद्रवियों ने चाय और पान का खोखा तोड़ दिया। एसपी सिटी समेत पुलिस फोर्स ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को संभाला। इसके तुरंत बाद मठ की चौकी तिराहे पर एक पक्ष के लोगों ने कांवरियों के जत्थे पर फायरिंग कर दी। जोगी नवादा का जत्था कछला से जल लेकर वनखंडीनाथ मंदिर की ओर जा रहा था। उपद्रवियों ने छतों से कांवरियों पर जमकर पथराव भी किया।

फायरिंग में दर्जन भर से अधिक लोग लहूलुहान हो गए। यहां उपद्रवियों ने पुलिस की रक्षक मोबाइल भी तोड़ दी। गोलीबारी में एसपी सिटी शिवसागर सिंह समेत पांच सिपाही भी घायल हो गए। इधर, बासमंडी में उपद्रवियों ने एक स्कूटर में आग लगा दी। यहां उपद्रवी व पुलिस आमने-सामने आ गए। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़कर उपद्रवियों को काबू में किया। जोगी नवादा में बनखंडीनाथ मंदिर के पास उपद्रवियों ने करीब एक दर्जन खोखों को आग के हवाले कर दिया।

पुलिस ने यहां सड़क पर लाठी फटकार कर उपद्रवियों को खदेड़ा। बदायूं रोड पर भी उपद्रवियों ने तीन खोखों में आग लगा दी। यहां एक टेंपों और भूसे की दुकान में भी आग लगा दी गयी। उपद्रवियों ने शहामतगंज में कई दुकानों को आग लगा दी। इसके बाद उन्होंने वहां पेट्रोल पंप को जलाने का प्रयास किया। तभी अधिकारियों के आदेश पर पीएसी ने उपद्रवियों को फायरिंग करके खदेड़ा। देर रात तक अलग-अलग स्थानों पर पुलिस और उपद्रवियों के बीच झड़प जारी थी। उपद्रवियों पर नियंत्रण के लिए आरआरएफ और पीएसी को लगा दिया गया था।

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दुख तो तब होता है, जब मेरे दोस्त ही .................मेरे बात पर विश्वास नही करते ह.........उनके लिए मैने लिंक भी दे दिया है...........


असम मे दंगा (असम दूसरा कश्मीर बन रहा है )

असम मे दंगा (असम दूसरा कश्मीर बन रहा है )







पहले कश्मीर.. फिर केरल इसके बाद आसाम मे हिंदू अल्पसंख्यक हो गया है और अब मुस्लिम खुलकर हिन्दुओ के घर जला रहे है |
कोकराझार मे बीस हिन्दुओ को कांग्रेस के दामाद बंगलादेशी मुस्लीमों ने जिन्दा जलाकर मार डाला और १२०० हिन्दुओ के घर जला दिये गए |
कुल 
अब तक 41 लोगों की मौत हो चुकी है, 2 लाख हज़ार हिंदू अपना घर छोडकर राहत शिविरों मे रह रहे है |
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अब कहाँ है मानवाधिकार आयोग ? अब कहाँ है गुजरात दंगो पर अपनी छाती कुटने पाले तथाकथित सेकुलर माफिया ?
आखिर सरकार अल्पसंख्यक आयोग के तर्ज पर जिन राज्यों मे हिंदू अल्पसंख्यक है वहाँ हिंदू आयोग क्यों नही बनाती ?
आये दिन केरल मे हिदुओ की हत्या हो रही है और सरकार क्यों खामोश है ?

असाम के कोकराझार मे बंगलादेशी मुस्लिम और बोडो जनजातियो के बीच भयंकर दंगा हो रहा है | पूरे आसाम मे कांग्रेस ने असम गण परिषद नामक पार्टी का बर्चस्व खत्म करने के लिए एक प्लान के तहत पूरे आसाम मे बंगलादेशी घुसपैठियों को बसाया और उन्हें भारत की नागरिकता दी |
पिछले दो दशको के बाद से आज ये बंगलादेशी मुस्लिम आज आसाम की बड़ी राजनितिक ताकत बन गए है और आसाम के कुल वोट का ३०% हिस्सा है .. चूँकि ये एकजुट होकर कांग्रेस को वोट देते है इसलिए पिछले पन्द्रह सालो से कांग्रेस आसाम मे जीतती आ रही है |



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http://www.bhaskar.com/article/NAT-assam-violence-no-end-to-unrest-lakhs-displaced-3574350-PHO.html?HT1=
आज आसाम मन्त्रिमन्डल मे दो बांग्लादेशी मूल मे मंत्री है जिसमे से एक शाकिर अहमद ने विधायक रूमी नाथ का अपने बंगले पर बिना पहले पति को तलाक दिये धर्म परिवर्तन करवाकर निकाह करवाया था |

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http://khabar.ibnlive.in.com/news/77986/1

मित्रों, बोडो जो एक हिंदू धर्म को मानने वाली जनजाति है उनकी लड़कियों के साथ आये दिन ये बंगलादेशी मुस्लिम छेड़छाड़ करते है और उनके अपहरण भी करते है .. कोकराझार मे कुछ बंगलादेशी मुस्लिमो ने एक बोडो लड़की को स्कूल के बाहर से उठाने की कोशिश की फिर उस लड़की ने शोर मचा दिया तो लडके भाग गए लेकिन बाद मे उनलोगों ने बोडो हिन्दुओ के घरों को आग के हवाले करना शुरू कर दिया |

मित्रों, ये नीच कांग्रेस सिर्फ अपने वोट की खातिर इस देश को बर्बाद कर देगी .. कांग्रेस को सिर्फ अपने वोट बैंक से मतलब है उसे इस देश के बहुसंख्यक हिन्दुओ की कोई परवाह नही है |

और कांग्रेस की इस साजिश मेविदेशो के कंट्रोल होने वाली  नीच मीडिया उसका पूरा सहयोग दे रही है |
हिन्दुओ ,, जागो अब तो संगठित हो जाओ .. नही तो हमारी आने वाली पीढ़ियां हमे कभी माफ़ नही करेंगी |

दुख तो तब होता है, जब मेरे दोस्त ही .................मेरे बात पर विश्वास नही करते ह.........उनके लिए मैने लिंक भी दे दिया है...........

Monday 23 July 2012

नाग पंचमी और सर्पदोष निवारण


नाग पंचमी और सर्पदोष निवारण



नाग संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितनी कि वैदिक संस्कृति। नागों का अस्तित्व चारों युग में रहा है और रहेगा। नाग सभी तरह के होते हैं, लेकिन अधिकांश सर्प बिरादरी संहारक नहीं बल्कि मानव की सहयोगी है। नाग यानी विषधर सांपों की सैकड़ों जातियां हैं। भारत, बर्मा, चीन, जापान, मलयेशिया,  बाली, ऑस्ट्रेलिया,  ब्राजील के वर्षावन आदि गर्म देशों और समुद्र की अथाह गहाराइयों तक इतने बड़े-बड़े सर्पवंश कायम हैं कि इनकी गिनती करना कठिन है।

अजगर ऐसा विशालकाय और दीर्घजीवी सर्पराज है जो छह महीने में एक ही बार शिकार के लिए निकलता है, बाकी समय आराम और संभोग में व्यस्त रहता है। अगर मधुर मिलन के दौरान किसी ने किसी भी प्रकार के सांप को छेड़ दिया तो उसकी खैर नहीं। फिर चाहे कितना ही लम्बा वक्त लगे। हमारे आसपास घूमने वाले कोबरा और हरे काले सांप आम सर्पजाति से है जो अगर किसी परभक्षी के शिकार न हों तो भी सैकड़ों क्या हजारों साल तक जीवित रहते हैं। सांप यानी नागलोकवासी किसी को तंग नहीं करते है। उनके साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। अगर कही रास्ते में दिखाई भी देंगे तो अपना रास्ता नाप लेते हैं या छिप जाते हैं।

माना जाता है नाग या सभी सांपों के आंखों में सूक्ष्मदर्शी यंत्र होता है जिसमें उसे अपना पुराना रास्ता, जगह और उस इंसान की अभिट छवि अंकित रहती है जो उस पर आक्रमण करता है जिससे वह कई जन्मों तक बदला लेने की फिराक में रहता है और जब भी जहां भी मिल जाए उसके प्राण लेने में देर नहीं लगाता है।

नाग यानी सर्प देवताओं को भी प्रिय है। कई सांप तो रूप बदलने में माहिर होते हैं। माना जाता है कि इच्छाधारी नाग या नागिन इसके उदाहरण है जो आज भी यत्र तत्र अपने काम को पूरा करने के इरादे लेकर दिखाई पड़ते हैं और अपने पूर्व शत्रु को मार कर चले जाते हैं। गरुड़ और बाज पक्षी सांपों के प्रतिद्वन्द्वी हैं। बाज या गरुड़ को कहीं भी सांप मिल जाए तो उसके शिकार में देर नहीं लगाते हैं। यह भी एक विडंबना है किन परभक्षियों पर सर्पडंक भी असर नहीं करता।

नाग हमेशा अपने जोड़े के साथ रहता है और दोनों आगे-पीछे हो भी जाए जो भटकते नहीं। वे कभी भी एक जगह स्थाई निवास नही बनाते हैं। कहा जाता है कि अगर उन दोनों में से किसी एक प्रेमी पर भी किसी ने हमला कर दिया या उसे मार दिया तो तत्काल दूसरा जीवित साथी  उसकी आंखों के अक्स से शत्रु की तस्वीर और शक्ल सूरत को स्वंय में अंकित कर लेता है और फिर निकल पड़ता है उससे बदला लेने की तलाश में। कहा जाता है कि इस प्रक्रिया में सांप को कई बार वर्षों लग जाते है लेकिन वह अपने प्रेमी के संहारक को मृत्युलोक पहुंचा कर ही दम लेता है। माना जाता है कि इच्छाधारी नाग या विषकन्याएं इस बात का प्रमाण हैं कि वे पाताल से भी अपने शत्रु को मार कर दम लेती हैं।

दिन भर आहार-विहार के बाद सांपों को मैथुन बहुत पसन्द है और एक सर्पिणी साल में 10.12 गर्भधारण करके अंडे देती है जिसमें अधिकांश अंडे उसके खुद का आहार बन जाते हैं। इक्का-दुक्का अंडा ही बचता होगा जो अपने दम पर जन्म लेकर बाद सर्पजाति में शामिल हो जाता है। पानी में सांप झुंड बनाकर रहते है और मछलियां-मेंढक उनके आहार होते हैं।

प्रति वर्ष श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी व्रत पूरे उत्तर और मध्य भारत में बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस व्रत के पुण्यप्रताप से कालभय, विषजन्य मृत्यु और सर्पभय नही रहता है। नागपंचमी के व्रत का सीधा सम्बन्ध उस नागपूजा से भी है जो शेषनाग भगवान शंकर और भगवान विष्णु की सेवा में भी तत्पर है और इसकी पूजा से शिव पूजा/विष्णु पूजा के तुल्य फल प्राप्त होता है। नागजाति का वैदिक युग में बहुत लंबा इतिहास रहा है, जो भारत से लेकर चीन तक फैला है। चीन में आज भी ड्रैगन यानी महानाग की पूजा होती है और उनका राष्ट्रीय चिह्न भी यही ड्रैगन है।
डायनासोर काल के बाद एक समय था जब नागलोक धरती से लेकर समुद्र तल तक फैला था। परन्तु कालान्तर में मानवजाति के विकास ने और वैदिक युगीन महाबलियों ने अवतारी देवताओं ने ही धरती से विशाल पराक्रमी नागों का अस्तित्व ही मिटा दिया।

तब से नागस्मृति में आम मनुष्य एक शत्रुपक्ष और प्रति़द्वन्द्वी बन गया है। नागजाति की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने मानव जाति को वरदान दिया था कि जो इस लोक में नागपूजा करेगा या उनकी रक्षा करेगा उसको कालभय, अकालमृत्यु, विषजन्य और सर्पदंश का भय नहीं रहेगा।

ब्रह्मा जी ने यह वरदान मानवजाति को पंचमी के दिन दिया था और आस्तिक मुनि ने भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी। तभी नागपंचमी की यह तिथि नागों को अत्यन्त प्रिय है। श्रावण शुक्ल पंचमी को उपवास कर नागों की पूजा करनी चाहिए। बारह महीने तक चतुर्थी तिथि के दिन एक बार भोजन करके पंचमी को व्रत करें। 

पृथ्वी पर नागों के चित्र अंकित करके, काष्ठ या मिट्टी के नाग बनाकर पंचमी के दिन करवीर, कमल, चमेली आदि पुष्प गंध धूप ओर विविध नैवेद्य(प्रसाद) से उसकी पूजा करके घी, खीर, लड्डू ब्राह्मणों को खिलाएं। कई जगहों पर सपेरे भी नाग-अजगर लेकर घूमते हैं पर अब वन्यजीव ऐक्ट के अन्दर जिंद सर्प कैद करना जुर्म है अतः शहरों में सपेरे कम दिखाई देते हैं। प्रतीकात्मक सर्प बनाकर पूजना ही बेहतर है।

नाग के कई नाम हैं जैसे शेष यानी अनंत, बासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिया, तक्षक, और पिंगल इन बारह नागों की बारह महीनों में क्रमशः पूजा करने का विधान है। यही यज्ञ विधान जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित के लिए किया था। जो भी कोई नाग पंचमी को श्रद्धापूर्वक व्रत करता है उसे शुभफल प्राप्त होता है।

इस दिन नागों को दूध का स्नान-पान कराने से सभी बड़े-बड़े नाग अभय दान देते हैं। परिवार में सर्पभय नहीं रहता। वर्तमान में कालसर्पयोग का प्रभाव क्षीण हो जाता है। इस दिन कालसर्प दोष की निवृति के लिए पूजा करना भी फलदायक होता है।

उत्तर भारत में अधिकांश रूप से क्षेत्रीय स्तर पर नागपंचमी का व्रत धारण करके नाग देवता की पूजा की जाती है। नागों की पूजा की इस परम्परा के सम्बन्ध में अनेक व्याख्याएं की गई हैं और प्रायः सभी विद्वान इस बात पर एक मत हैं कि नाग भारत की एक प्रतापी जाति थी। आधुनिक नाग इसी नाग प्रजाति के वंशज हैं। परन्तु इस बारे में कोई प्रमाण प्राप्त नहीं है।

एक पुरातत्वविद् के अनुसार नागवंशी नागलोक जो भी हों, प्रारम्भ में हिमालय में रहते थे। वे बड़े परिश्रमी तथा विद्वान थे। नाग कन्याएं अत्यन्त सुन्दर होती थीं जिनके प्रसंग में भारतीय इतिहास भरा पड़ा है। अर्जुन की पत्नी उलूपी एक ऐसी ही नाग कन्या थी। नागलोक ने चीन और भारत तक अपने सम्बन्ध बढ़ाए थे। जहां भारत की ही तरह उनकी पूजा होती है। 

नागों का नाम संभवतः नाग की तरह के रंग के कारण अथवा नागों को पालने में दक्ष होने के कारण पड़ा। वे नाग की तरह घात करके छिपने में दक्ष थे। नाग-पोश उनका घातक अस्त्र था व नागों को पकड़कर उनके विष का नाना विधि से प्रयोग करते थे। तक्षक ने एक ऐसे ही विष बुझे बाण से महाभारत काल में अर्जुन के पौत्र परीक्षित की जान ले ली थी।

नाग वस्तुतः न आर्य थे न अनार्य और न ही विदेशी। इनके पिता कश्यप आर्य ऋषि थे जबकि उनकी दो पत्नियों विनता और कदू्र में से कदू्र अनार्य थी। ये नाग कदू्र की ही संतान थे। नाग मातृवंशी हैं और कदू्र से ही अपनी उत्पत्ति मानते हैं। पिता का उल्लेख नहीं करते हैं।
 

अनेक नाग अपने कर्म और विद्वता से ऋषि पद तक पहुंचे। ऐसे कई नागों का उल्लेख ऋग्वेद में है। कपिल मुनि भी नागराज थे  जिन्होंने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म किया था। महर्षि जरतकारू भी ऐसे ही नाग थे।

जरतकारू बासुकि नाग की बहन मनसा के पुत्र थे। जरतकारू के पुत्र आस्तिक ने तो जनमेजय के यज्ञ में अनेक नागों की जान बचाई थी। कुछ नाग शेष और अनंत के रूप में अति उच्च स्थान पाने में  समर्थ हुए। आर्यों को समुद्र मंथन में अनंत का सहयोग लेना पड़ा था क्योंकि वे समुद्रीय कार्य में विशेष दक्ष थे ।

नागों ने मन्दराचल पर्वत के रास्ते पर भूमि को काटने-छांटने और समुद्र-यात्रा में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी। बासुकि ने समुद्र मंथन में मदद की पर समुद्र की प्राप्तियों को आर्यों ने नागों में नहीं बांटा इससे नाग रुष्ट हो गए और आर्यों को समय-समय पर तंग करने लगे।

अर्जुन ने खांडव वन का दाह करके नाग जाति को बहुत हानि पहुंचाई थी। कृष्ण ने मथुरा तक फैले हुए नागों का भारी विघ्नविनाश किया। नागों ने हस्तिनापुर राज्य से बदला लेने का निश्चय किया। परीक्षित के पुत्र  जनमेजय ने अनेक नागपुरुषों को बंदी बनाकर उन्हें आग में जीवित झोंक दिया। महर्षि जरतकारू के पुत्र आस्तिक नागराज बने थे। उन्होंने कुछ प्रमुख नागों को बचा लिया। रावण भी अपने को नागवंशी कहता था।
नागों का क्षेत्र बहुत व्यापक था। कुरूक्षेत्र में उनका प्रमुख राज्य था। प्रयाग में भी उनका प्रमुख राज था। प्रयाग में गंगा के किनारे बासुकि का मंदिर आज भी विराजमान है। महाभारत के जरासन्ध पर्व में, मगध में राजगृह में नागवंश के राज्य का उल्लेख है। यहां राजगृह की खुदाई में मणिनाग का मंदिर भी मिला है।

अर्जुन की पत्नी उलूपी के पिता राजा कोरथ्य की राजधानी हरिद्वार थी। बौद्ध युग में काशी, चंपा और मगध में शक्तिशाली नाग राजाओं का आधिपत्य था। भद्रवाह, जम्मू, कांगड़ा आदि में नाग राजाओं की देवता रूप में मूर्तियां मिलती हैं। ये मूर्तियां प्राचीन नाग राजाओं की हैं और आजकल उन भागों में इनकी पूजा की जाती है। मध्य प्रदेश, नागपुर, गढ़वाल और नागालैंड में भी नाग राजाओं के क्षेत्र थे। नाग और शिशु नागवंश के राजपूतों ने देश के अनेक भागों में राज किया ।
 



नागपंचमी का पौराणिक सत्य: एक बार राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन से अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नाम का एक अश्व निकला। उसे देखकर नाग माता कदू्र ने अपनी सौतन विनता से कहा कि देखो, यह अश्व सफेद रंग का है, परन्तु इसके बाल काले रंग के दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा कि नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला न ही लाल। यह सुनकर कदू्र ने कहा आप मेरे साथ शर्त लगा लो जो भी शर्त जीतेगी वही दूसरे की दासी बन जाएगी।

विनता ने शर्त स्वीकार कर ली। दोनों अपने स्थान पर चली गईं। कदू्र ने अपने पुत्र नागों को बुलाकर सारा वृतान्त सुनाया और कहा कि आप सभी सूक्ष्म आकार के होकर इस अश्व से चिपक जाओ ताकि मैं शर्त जीतकर विनता को अपनी दासी बना सकूं। माता के उस कथन को सुनकर नागों ने कहा - मां आप शर्त जीतो या हारो, परन्तु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे।

कदू्र ने कहा- तुम मेरी बात नहीं मानते ?  मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि 'पांडवों के वंश  में उत्पन्न जनमेजय जब सर्प यज्ञ करेगा, तब तुम सभी उस अग्नि में जल जाओगे।' माता का श्राप सुनकर सभी घबराएं और बासुकि को साथ लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सारी घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने कहा - चिन्ता मत करो,  यायावर वंश में बहुत बड़ा तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण उत्पन्न होगा। उसके साथ आप अपनी बहन का विवाह कर देना। उससे आस्तिक नाम का विख्यात पुत्र उत्पन्न होगा, वही जनमेजय के सर्प यज्ञ को रोककर आपकी रक्षा करेगा।

ब्रह्मा जी ने यह वरदान पंचमी के दिन दिया था और आस्तिक मुनि ने भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी। तभी नागपंचमी की तिथि नागों को अत्यन्त प्रिय है। श्रावण शुक्ल पंचमी को उपवास कर नागों की पूजा करनी चाहिए। बारह महीने तक चतुर्थी तिथि के दिन एक बार भोजन करके पंचमी को व्रत करें।  अनंत, बासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, घृतराष्ट,शंखपाल, कालिया, तक्षक, और पिंगल इन बारह नागों की बारह महीनों में क्रमशः पूजा करने का विधान है। यही यज्ञ विधान जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित के लिए किया था।


जो भी कोई नाग पंचमी को श्रद्धापूर्वक व्रत करता है उसे शुभफल प्राप्त होता है । इस दिन नागों को दूध का स्नान-पान कराने से सभी बड़ेबड़े नाग अभय दान देते हैं । परिवार में सर्पभय नहीं रहता। वर्तमान में  कालसर्पयोग का प्रभाव क्षीण हो जाता है। राजस्थान में नाग पंचमी श्रावण कृष्ण पंचमी को मनाई जाती है। नाग के प्रतीक रूप में चांदी अथवा तांबे की सर्प प्रतिमा अथवा रस्सी में सात गांठें लगाकर उसे नाग को प्रतीक मानकर उसकी पूजा की जाती है। सर्प की बाम्बी का पूजन किया जाता है और दूध चढ़ाया जाता है। बाम्बी की मिट्टी घर में लाकर कच्चा दूध मिलाकर चक्की-चूल्हे आदि पर सर्प आकृति बनाते हैं। शेष मिट्टी में अन्न के बीज बोते हैं,जिसे खत्ती गाड़ना कहते हैं। इस दिन भीगा हुआ बाजरा और मौठ खाने का विधान है।


Saturday 21 July 2012

कश्मीरी हिंदू


कश्मीरी हिंदू



12 जनवरी 1990 – ये वही काली तारीख है जब लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपनी धरती, अपना घर हमेशा के लिए छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा | वे आज भी शरणार्थी हैं | उन्हें वहाँ से भागने के लिए मजबूर करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं | उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिंदू शरणार्थियों को वो भी नहीं |

1990 के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी | हिजबुल मुजाहिदीन ने 4 जनवरी 1990 को प्रेस नोट जारी किया जिसे कश्मीर के उर्दू समाचारपत्रों आफताब और अल सफा ने छापा | प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था | कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएँ शुरू हो गयी | कश्मीर की मस्जिदों के लाउडस्पीकर जो अब तक केवल अल्लाह-ओ-अकबर के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कहने लगे कि कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियाँ हमारे लिए छोड़ जाओ | "कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है", "असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन" (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदू स्त्रियों के साथ, लेकिन पुरुष नहीं"), ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे |

दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि सभी कश्मीर में इस्लामी वेश भूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया | कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, मकान और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिन्हित कर दिए गए | यहाँ तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने को उन्हें विवश किया गया | 24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ – काफिरों को क़त्ल करो का सन्देश कश्मीर में गूँज रहा था | इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भुला चुका था, वो एक बार फिर अपने सामने था |

आज कश्मीर घाटी में हिंदू नहीं हैं | उनके शरणार्थी शिविर जम्मू और दिल्ली में आज भी हैं | 22 साल से वे वहाँ जीने को विवश हैं | कश्मीरी पंडितों की संख्या 4 लाख से 7 लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए | एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गयी | कभी धनवान रहे ये हिंदू आज सामान्य आवश्यकताओं के मोहताज हैं | उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे | उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आके कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरूंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं |

कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहाँ कभी पांडवों की 27 पीढ़ियों ने राज्य किया था, वो कश्मीर जिसे आज भी भारत माँ का मुकुट कहा जाता है, वहाँ भारत के झंडा लेकर जाने पर सांसदों को पुलिस पकड़ लेती है और आम लोगों पर डंडे बरसाती है | 400 साल पहले तक भी यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था | औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गया था | बाद में उसे औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित करके भरे दरबार में उसे क़त्ल किया था | भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है | “हिंदू घटा तो भारत बंटा” के 'तर्क’ की कोई काट उपलब्ध नहीं है | कश्मीर उसी का एक उदाहरण मात्र है |


मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेकुलर पार्टियों और हिंदू संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजीदां पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती | गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेकुलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर क़त्ल किए गए दसियों हज़ार कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता |

 सरकार कहती है कि कश्मीरी हिंदू "स्वेच्छा से" कश्मीर छोड़ कर भागे | इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड़यंत्र भी रचा गया है | आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं जो आज भी विस्थापित हैं | भोगने वाले भोग रहे हैं | जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है, और आँखें याद करके आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है |



रामायण की देवी सीता को शरण देने वाली भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पड़ा | कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है - "मन करता है फूल चढा दूँ लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी धरती पर" |



Wednesday 11 July 2012

तुलसीदास के दोहे

तुलसीदास के दोहे

तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक
आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक ।।

आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह!
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!!

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर!
बसीकरण एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर!!

बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय!
आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय!!

तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक!
साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक!!

काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान!
तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान!!

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार!
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!!

नाम राम को अंक है , सब साधन है सून!
अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून!!

प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समान!
तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान!!

हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ!
तुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!!

तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज!
राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरुराज!!

राम दूरि माया बढ़ती , घटती जानि मन मांह !
भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !!

राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि!
राग न रोष न दोष दुःख सुलभ पदारथ चारी!!

चित्रकूट के घाट पर भई संतान की भीर !
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर!!

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए!
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए!!

नीच निचाई नही तजई, सज्जनहू के संग!
तुलसी चंदन बिटप बसि, बिनु बिष भय न भुजंग !!

ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहीं न दूसरी बात!
कौड़ी लागी लोभ बस करहिं बिप्र गुर बात !!

फोरहीं सिल लोढा, सदन लागें अदुक पहार !
कायर, क्रूर , कपूत, कलि घर घर सहस अहार !!

तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन!
अब तो दादुर बोलिहं हमें पूछिह कौन!!

मनि मानेक महेंगे किए सहेंगे तृण, जल, नाज!
तुलसी एते जानिए राम गरीब नेवाज!!

होई भले के अनभलो,होई दानी के सूम!
होई कपूत सपूत के ज्यों पावक मैं धूम!!

Monday 9 July 2012

देश का दुश्मन है सेकूलर सम्प्रदाय - 1


देश का दुश्मन है सेकूलर सम्प्रदाय - 1







इसमें सन्देह नहीं कि भारत जैसे अनेक धर्म-सम्प्रदायों वाले देश में सभी को समान अधिकार होने चाहिए और किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के प्रति पक्षपात या भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन देश में एक सम्प्रदाय ऐसा है, जो इस देश के बहुसंख्यकों को सभी अधिकारों से वंचित रखने और तथाकथित अल्पसंख्यकों को सभी अधिकारों से पूर्ण करने की वकालत करता है। यह सम्प्रदाय है स्वयं को सेकूलर कहने वाले कुबुद्धिजीवियों, पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकारवादियों का।

 ये यह मानते हैं कि इनको इस देश के बहुसंख्यकों की हर बात का विरोध करने का जन्मसिद्ध अधिकार है। बहुसंख्यकों अर्थात् हिन्दुओं के पक्ष में कोई बात कहना इनकी दृष्टि में साम्प्रदायिकता है और उनके विरोध में छातियाँ पीटना इनकी नजर में महान् धर्मनिरपेक्षता या सेकूलरिटी है। अपनी सोच में ये इतने कट्टर हैं कि देश के हित और अनहित की चिन्ता किये बिना अपने कठमुल्लेपन पर अड़े रहते हैं। इसलिए मैं इनको सेकूलर सम्प्रदाय कहता हूँ। 

यह सेकूलर सम्प्रदाय ही देश का असली दुश्मन है। ये इस बात को महसूस नहीं करते, और यदि करते हैं तो उसकी चिन्ता नहीं करते, कि इनकी एकपक्षीय सोच और हठधर्मिता के कारण देश को कितनी हानि पहुँच रही है। वास्तव में कई बार तो ऐसा लगता है कि इनकी अधिकांश हरकतें देश को नुकसान पहुँचाने के इरादे से ही होती हैं।
आज देश में साम्प्रदायिक भेदभाव, अविश्वास और घृणा की हद तक का जो वातावरण फैला हुआ है, उसको फैलाने में ये सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। इसलिए मैं इनको देश का असली दुश्मन मानता हूँ। अपने इस निष्कर्ष की पुष्टि करने के लिए मैं एक नहीं अनेक उदाहरण दे सकता हूँ। 
यहाँ मैं एक-एक करके उन घटनाओं और मामलों की चर्चा करूँगा, जिनमें इस सम्प्रदाय की जहरीली और दोगली भूमिका स्पष्ट है। 


1. सबसे पहले लीजिए रामजन्मभूमि का मामला : यह एक माना हुआ तथ्य है कि विदेशी हमलावर बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने वहाँ पर बने हुए भगवान राम के मन्दिर को तोड़कर उसी के मलबे से मस्जिदनुमा ढाँचा बनवाया था।

 इसको मुक्त कराने के लिए तभी से हिन्दू संघर्ष कर रहे थे और बीच-बीच में सभी मुगल बादशाहों तथा अंग्रेजों के युग में भी यह संघर्ष चलता रहा था। स्वतंत्र भारत में हिन्दू इस स्थान को वापस माँग रहे थे और इसके बदले किसी अन्य स्थान पर भव्य मस्जिद बनाकर मुसलमानों को भेंट करने को भी तैयार थे, लेकिन देश का सेकूलर सम्प्रदाय प्रारम्भ से ही हिन्दू समाज की इस माँग के खिलाफ रहा और मुसलमानों को भड़काता रहा कि यदि बाबरी मस्जिद हाथ से निकल गयी तो कयामत आ जाएगी।

इसके लिए मुलायम सिंह जैसे मुस्लिम परस्त मुख्यमंत्री को निहत्थे हिन्दुओं पर गोली वर्षा करने में भी शर्म नहीं आयी और सेकूलर सम्प्रदाय ने उनकी इस नीच करतूत को भी सही ठहराया। अन्ततः जब हिन्दू समाज का धैर्य जबाब दे गया, तो हिन्दुओं ने उस अवांछनीय ढाँचे को गिरा डाला और वहाँ श्रीराम का मन्दिर बना दिया। उस मस्जिद नुमा ढाँचे सियापा करने में सेकूलर सम्प्रदाय सबसे आगे रहा। इनका दोगलापन इस बात से स्पष्ट है कि कश्मीर तथा देश के सैकड़ों स्थानों पर हजारों मन्दिरों को मुसलमानों द्वारा गिराये जाने और वहाँ जबर्दस्ती मस्जिद बनाये जाने पर उनके मुँह से निन्दा का एक शब्द भी नहीं निकला। सेकूलर सम्प्रदाय का यह दोगलापन केवल इस मामले में ही नहीं अन्य अनेक मामलों में भी बेनकाब हुआ है, 
जैसा कि हम आगे देखेंगे।


2. कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ बहुसंख्यक  मुसलमानों ने जो सलूक किया है, वह जग जाहिर है। 4 लाख से भी अधिक कश्मीरी हिन्दुओं को बहुसंख्यक मुसलमानों और उनके द्वारा पोषित-समर्थित आतंकवादियों के डर से कश्मीर छोड़कर बाहर आना पड़ा और उनमें से अधिकांश आज भी शरणार्थी शिविरों में दयनीय दशा में रह रहे हैं।

 लेकिन सभी जगह अल्पसंख्यकों अर्थात् मुसलमानों की तरफदारी करने वाले हमारे सेकूलर कुबुद्धिजीवियों के मुँह कश्मीरी हिन्दुओं के मामले में सुई-तागे से सिले हुए हैं।

 फिलस्तीन विस्थापितों तक के लिए छातियाँ पीटने वाले ये निर्लज्ज मानवाधिकारवादी कश्मीरी हिन्दू विस्थापितों के लिए एक शब्द भी नहीं बोलते और उन पर कश्मीरी इस्लामी आतंकवादियों द्वारा किये गये अमानुषिक अत्याचारों को देखकर भी आँखें बन्द कर लेते हैं। उलटे वे कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को दिल्ली में बुला-बुलाकर उनका प्रचार करते हैं। ऐसा करते हुए उन्हें कोई शर्म महसूस नहीं होती। उनकी दृष्टि में मानवाधिकार केवल इस्लामी आतंकवादियों के होते हैं, हिन्दुओं को वे मानव नहीं मानते।

 मैं सेकूलर सम्प्रदायवालों से पूछना चाहता हूँ कि जैसा सलूक कश्मीर के मुस्लिम बहुसंख्यकों ने वहाँ के हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ किया है, यदि वैसा ही सलूक देश भर के हिन्दू बहुसंख्यक यहाँ के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ करें, तो उसको वे किस आधार पर गलत ठहरायेंगे?


3. सेकूलर सम्प्रदाय का एक और शौक है- नक्सलवादी हिंसा का समर्थन करना और नक्सलवादियों के मानवाधिकारों की पैरवी करना। बड़े-बड़े सेकूलर कुबुद्धिजीवी नक्सलवादियों की हिंसा का समर्थन यह कहकर करते हैं कि वे वंचित या आदिवासी समुदाय की लड़ाई लड़ रहे हैं, क्योंकि वहाँ पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। परन्तु वे यह नहीं बताते कि सरकारी विकास योजनाओं को रोककर और सरकारी कर्मचारियों का अपहरण और हत्या करने से यह विकास कैसे होगा? यदि नक्सलवादियों की हिंसा उचित है, तो वे सरकारी हिंसा को गलत कैसे ठहरा सकते हैं।

 जब भी कोई नक्सलवादी हत्यारा नेता किसी पुलिस कार्यवाही में मारा जाता है, तो तथाकथित मानवाधिकार संगठन उसकी पैरवी में जमीन-आसमान एक कर देते हैं। लेकिन जब नक्सलवादियों द्वारा किये गये हमलों में या उनकी बारूदी सुरंगों के फटने से दर्जनों पुलिसवाले या सैनिक मारे जाते हैं, तो इनके मुँह से सांत्वना का एक शब्द भी नहीं निकलता। वास्तव में ये तथाकथित मानवाधिकारवादी अपनी करतूतों में इतना दोगलापन दिखाते हैं कि अब कोई भी इनकी बात को गंभीरता से नहीं लेता। अपनी इस दयनीय छवि के लिए यह सेकूलर सम्प्रदाय स्वयं ही जिम्मेदार है।  

(जारी)

देश का दुश्मन है सेकूलर सम्प्रदाय -2


देश का दुश्मन है सेकूलर सम्प्रदाय -2






4. गोधरा का हत्याकांड सेकूलर सम्प्रदाय के दोमुँहेपन का सबसे जीवन्त उदाहरण है। अयोध्या से लौट रहे निर्दोष रामभक्तों, जिनमें महिलायें और बच्चे भी शामिल थे, को गोधरा के निकट रेलगाड़ी रोककर मुसलमानों की भीड़ ने पेट्रोल डालकर जिन्दा जला दिया था और डिब्बे के दरवाजों को सब ओर से बन्द कर दिया था, ताकि वे निकलकर भाग न सकें। 

इस लोमहर्षक हत्याकांड में 58 स्त्री-पुरुष-बच्चे जीवित जला दिये गये थे। सेकूलर सम्प्रदाय के लोगों ने इस हत्याकांड की कभी निन्दा नहीं की, बल्कि उसे अयोध्या के बाबरी ढाँचे के गिराने की प्रतिक्रिया बताकर उचित साबित करने की कोशिश की। इतना ही नहीं, कुछ महासेकूलर तो इस सुनियोजित हत्याकांड को मात्र दुर्घटना बताकर हत्यारों को बचाने का प्रयास भी कर रहे थे। इस मूर्खता का जो परिणाम होना था, वही हुआ। जब प्रतिक्रिया में गुजरात में हिन्दू समुदाय के उत्साही तत्वों ने मुसलमानों को मारा और जमकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए, तो वे ही सेकूलर कुबुद्धिजीवी इन दंगों की भत्र्सना में दिन-रात एक करने लगे, जिनके मुँह से गोधरा हत्याकांड की निन्दा में एक शब्द भी नहीं निकला था। ये बुद्धि राक्षस इतने निर्लज्ज हैं कि आज भी गुजरात दंगों की बात करते समय गोधरा के सामूहिक हत्याकांड को भूल जाते हैं, जैसे वहाँ कुछ हुआ ही नहीं हो।

 मेरा यह स्पष्ट मत है कि गोधरा के हत्यारे केवल वे नहीं थे, जिन्होंने रेलगाड़ी रोकी, पेट्रोल डाला और आग लगायी, बल्कि उनमें वे भी शामिल माने जाने चाहिए, जिन्होंने इस हत्याकांड को उचित ठहराने और अपराधियों को बचाने की कोशिश की। यदि उन हत्यारों के पीछे सेकूलर सम्प्रदाय का मुखर समर्थन न होता, तो क्या उनकी हिम्मत हो सकती थी कि इस तरह सरेआम पेट्रोल डालकर रेलगाड़ी के डिब्बे में भरे हुए रामभक्तों को जिन्दा जला देते? उन प्रत्यक्ष हत्यारों को तो अदालत से सजा मिली और मिल रही है, लेकिन इन अप्रत्यक्ष हत्यारों को आज तक कोई सजा नहीं मिली, यह हमारे कानून की बड़ी खामी है। 


5. जब एक चित्रकार एम.एफ. हुसैन ने अपनी गलीज मानसिकता के कारण हिन्दुओं की आराध्य देवियों लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा आदि के नग्न और अपमानजनक चित्र बनाये, तो सेकूलर सम्प्रदाय के लोग उसकी इस नीच हरकत को कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सही ठहराने लगे। उनके पास इस बात का जबाब नहीं था कि कलाकारी केवल हिन्दुओं के देवी-देवताओं को अपमानित करने से ही हो सकती है? क्यों नहीं उस चित्रकार की दुम ने मुसलमानों की पूज्य नारियों फातिमा या आयेशा अथवा ईसाइयों की कुमारी मरियम या मेरी के नग्न चित्र बनाये? 

क्या हिन्दू समाज को अपमानित करने में ही उसकी कला की सार्थकता सिद्ध होती है? अगर कोई हिन्दू चित्रकार फातिमा, आयेशा या मरियम के ऐसे ही नग्न और अपमानजनक चित्र बना दे, तो क्या तब भी वे कला के नाम पर उसकी प्रशंसा करेंगे? ऐसे अनेक सवाल हैं जिनके जबाब सेकूलर सम्प्रदाय के बुद्धिराक्षसों के पास नहीं हैं।

 देखा तो यह गया है कि मुहम्मद का मात्र एक कार्टून बनाने पर सारा सेकूलर सम्प्रदाय डेनमार्क के उस कार्टूनिस्ट की भत्र्सना में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगा और मुस्लिम कठमुल्लों के स्वर में स्वर मिलाने लगा। क्या इस दोगलेपन की कोई सीमा है?


6. इसी से मिलता-जुलता मामला सलमान रुशदी और तस्लीमा नसरीन का है। रुशदी ने कुरान की कुछ आयतों को आधार बनाकर एक उपन्यास लिखा है, जिसमें इस्लाम की कमियों को उजागर किया गया है। उनके इस कार्य को इस्लाम का अपमान मानकर पूरी दुनिया के मुसलमान उनकी जान के पीछे पड़ गये। ईरान ने उसकी हत्या के लिए इनाम तक घोषित कर दिया। पर किसी सेकूलर ने इस कठमुल्लेपन की निन्दा नहीं की।

उनके लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल हिन्दू धर्म को अपमानित करने के लिए होती है।

 तस्लीमा ने तो इस्लाम का अपमान भी नहीं किया है, बल्कि बंगलादेश के मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को आधार बनाकर उपन्यास लिखे हैं। लेकिन इतने पर भी सारे कठमुल्ले और उनके पिछलग्गू सेकूलर बुद्धिराक्षस तसलीमा के पीछे पड़े हुए हैं। अपने देश से निर्वासित होकर उसने भारत में शरण चाही थी, पर सेकूलर सम्प्रदाय के खुले विरोध के कारण आज तक उसे शरण नहीं मिल सकी है और वह दुनिया में मारी-मारी फिर रही है। यह है सेकूलर सम्प्रदाय की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नग्न रूप।