Tuesday 12 March 2013

मै सेक्युलर नहीं हूं !

अगर सेक्युलर होने का मतलब हिन्दू विरोध है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर होने का मतलब मुस्लिम तुष्टीकरण हैं तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर होने का मतलब गोधरा को अनदेखा करके गुजरात पर रोना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.

अगर सेक्युलर का मतलब हज पर सब्सिडी और अमरनाथ,वैष्णोदेवी और कुम्भ यात्राओं पर टेक्स लगाना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर का मतलब अरबी भाषा के विकास के लिए अनुदान देना और संस्कृत भाषा की अनदेखी करना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.

अगर सेक्युलर का मतलब "सिर्फ मुस्लिम लड़कियां ही मेरी बेटियां हैं"कहना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर का मतलब ४०% लैपटॉप १५% मुस्लिम विद्यार्थियों को देना है,न की ८५% अन्य विद्यार्थियों को,तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.

अगर सेक्युलर का मतलब जामा मस्जिद का ४ करोड़ का बिल माफ़ करना और आम गरीब आदमी की बिजली १५५ रुपये के बकाये के लिए काट देना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर का मतलब मुग़लों के हर छोटी से छोटी इमारतों को बचाना और लाखों साल पुराने रामसेतु को तोडना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.

अगर सेक्युलर का मतलब शहीदों के सर को कटवाने वाले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को भोज देना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर का मतलब २४ परगना में हुए हिन्दुओं के ऊपर बर्बर हमलों को मीडिया में नहीं आने देना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.

अगर सेक्युलर का मतलब वन्देमातरम का विरोध करने वालों का साथ देना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर का मतलब तिरंगे का अपमान करने वालों का साथ देना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.
अगर सेक्युलर का मतलब डीडी नेशनल के लोगों से "सत्यम शिवम् सुन्दरम" हटाना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ.

अगर सेक्युलर का मतलब हिन्दुओं को आतंकवादी और हाफिज सईद को सम्माननीय शब्दों से संबोधित करना है तो मै सेक्युलर नहीं हूँ..
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.अगर सेक्युलर का मतलब ...........मै सेक्युलर नहीं हूँ.



Friday 1 February 2013

हर बार क्यों आहत होती हैं इनकी ही भावनाएं?

कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम को लेकर जो हो हल्ला मचाया जा रहा है,उसपर विरोध मुझे मजाक लग रहा है या इसके पीछे शायद कोई राजनीती है.मै फिल्म देखकर आ रहा हूँ,मुझे ऐसा कुछ भी नहीं लगा जिससे किसी की भावना आहत होती हो.अफगानिस्तान की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में इस्लामी आतंकवाद को दिखाया गया है जो आज पूरी दुनिया के लिए संकट का सबब बना हुआ है.अफगानिस्तान के बारे में ऐसा कौन है जो नहीं जनता?तालिबान से लेकर लादेन तक की वह कर्मभूमि है.शायद कोई ऐसा दिन बीतता हो जिस दिन वहां आतंकवादी हमले नहीं होते हों.फिर अगर ऐसे देश के हालत के ऊपर फिल्म बनेगी तो उसमे क्या दिखायेंगे?

क्या आतंकवादियों के नाम मुसलमानी है,इससे कुछ लोगों की भावना को चोट लग रहा है?हमारे यहाँ फिल्मे वर्षों से बनती आ रही है.किसी फिल्म में ब्राह्मणों को ठग दिखाया जाता था तो क्षत्रियों को शोषक.कभी वैश्यों को पैसा ऐठने वाला.इन लोगों की भावना तो कभी आहत नहीं हुई,पर एक समुदाय विशेष की भावना क्या अलग से उत्त्पन्न होती है,जो दुनिया के हर घटना पर आहत होती है और फिर हिंसक रूप ले लेती है. मै आपको यहाँ ये बता देना चाहता हूँ की जो विश्वरूपम भारत में बैन हुई है वही सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया में दिखने का आदेश हो चूका है और शायद जब तक मेरी यह पोस्ट पब्लिश हो,दिखना शुरू भी हो गया हो. 

दुनिया में कोई भी घटना हो उसमे भारतीय मुसलमानों की भावना ही क्यों आहत होती है?ये मेरे समझ से परे है.कुछ साल पहले लेबनान में मुहम्मद साहब का कार्टून बनने का समाचार आया,सबसे पहले भारत में इसकी प्रतिक्रिया देखने को मिली.कश्मीर जला और पुरे देश में हिंसक प्रदर्शन हुए. इसके बाद अभी कुछ महीने पहले ही बर्मा में मुस्लिम-बौद्ध दंगे की आग भारत के कई शहरों में जली.मुंबई से लेकर लखनउ तक हिंसा का नंगा नाच देखने को मिला. 

 इनकी जितनी भावना फालतू चीज़ों में आहत होती है,उतनी मुस्लिम आतंकवाद की सच्चाई को मानकर आहत होती तो पूरी दुनिया शांति से जीती.न कही ९/११ होता और न ही अफगानिस्तान बर्बाद होता.न गोधरा होता न गुजरात.पर इन्हें समझाए कौन?इनकी भावना न हुई छुई मुई का पौधा,स्पर्श करते ही आहत और तड़प...तड़प..... (मेरे इस लेख का लक्ष्य किसी की भावना को कुरेदना नहीं,सच्चाई से वाकिफ कराना है.आज बैंगलोर में मै यह फिल्म मै अपने एक मुस्लिम मित्र के साथ देख कर आ रहा हूँ.मुझे नहीं लगा की उनकी भावना फिल्म के बीच में या बाद में कही भड़की है.उन्होंने आखिरी में कहा था-पैसा वसूल.) इसकी बाद भी किसी की भावना भड़कती है तो भाई अपने मस्तिष्क में कोई यन्त्र लग्वावो जो भावनाओं पर नियंत्रण रख सके)

Tuesday 29 January 2013

ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है - 3

संस्कृत शिलालेख

30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, "एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।" शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को 'बटेश्वर शिलालेख' नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम 'तेजोमहालय शिलालेख' होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था।


शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar....now in the grounds of Agra,...it is well known, once stood in the garden of Tajmahal".


अनुपस्थित गजप्रतिमाएँ

31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक "Travels in India A Hundred Years ago" के पृष्ठ 191 में) लिखता है, "सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ से मैंने पालकी ली और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार ('COURT OF ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।"

कुरान की आयतों के पैबन्द

32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है। यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता।

33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है।


कार्बन 14 जाँच

34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

वास्तुशास्त्रीय तथ्य

35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है।


36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है।


37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं।


38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की सत्ता है।


39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद 'अल्लाह' शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में 'अल्लाह' शब्द कहीं भी नहीं है।

असंगतियाँ

40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे।


41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है।

42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।


43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है।


44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था।


45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया।


46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये।


47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था।


48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा।


ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है - 1
ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है - 2

मोदी के प्राइम मिनिस्टर बनने से हर्ज क्या है?


जब भी मोदी को प्राइम मिनिस्टर बनाने की बात होती है तो कुछ अपने नेता और विरोधी नेता के पैरो तले जमीन खिसक जाती है, पता नही इनको कौन सा डर सताये जाता है जो मोदी से इतना खौफ खाते है. मे कभी गुजरात गया नही लेकिन जितना कुछ भी सुना हू और मीडिया के जरिये देखा हू, गुजरात का विकास और वहा की जनता का मोदी मे यकीन अपने आप ही बयान करता है, लेकिन कॉंग्रेस और उनकी सरकार हमेसा मोदी को 2002 के लिये कोसते रहते है जबकि सत्य ए है की उसके बाद ही गुजरात का विकास हुआ और ए विकास किसी समुदाय विशेष के लिये नही हुआ है फिर भी कॉंग्रेस अपने आदतो से बाज़ नही अति.

 कॉंग्रेस ने किया ही क्या है? पिछले 5सालो से राहुल को प्रॉजेक्ट करने के मौके तलाशने मे निकल दिया, राहुल जहा भी चुनाव प्रचार मय गया वहा मूह की खानी पड़ी कॉंग्रेस को, सोनिया के पास भी विकल्प नही है क्यूंकि "प्यारे मोहन" तो मजबूरी के दें है, और अगर 2014 मे मनमोहन के नाम पर तो वोट मिलने से रहा, किसी और के नाम पर कॉंग्रेस ही बॅट जायेगी और राहुल की ग्रह दशा सही नही है, मगर सोनिया करे भी तो क्या? उपलब्धि के नाम पर कुछ है नही, इसलिये कॉंग्रेस के मंत्री अनप सनाप बयान देकर हिन्दू वोटो को बाटने का काम कर रहे है,

 शिन्दे (गृह मंत्री) भगवा को आतंकवादी संगठन कहते है तो उनकी हा मे हा मिलते हुए दिग्गी , " बि.जे.पि. दलित गृह मंत्री को बर्दस्त नही कर रहा" कहकर नया बखेड़ा बना रहे है. कॉंग्रेस ने एही सब किया है 5सालो मे, देश तो इनके लिये " टाइम पास" बन गया है, किसी की इज्जत लुटे या, किसी का सर काटकर दुश्मन ले जाये, या फिर आम जनता महनगाई तले दबकर मर जाये, इनके नेताओ का एक ही काम, हम तो घोटाले करते रहेंगे और सोनिया - सोनिया जपते रहेंगे!!!!

 आज समय की मांग ही मोदी है, मे सिर्फ इसलिये नही कह रहा क्यूंकि हिन्दू हू, बल्कि इसलिये भी की "किस बसे पर राहुल के लिये कॉंग्रेस को कोई वोट दे? देश और जनता की राय लोगो के सामने है और आज कल हर शनेल पर दिखाया जा रहा है !!! मोदी के समच राहुल कही नही टिकते, या यू काहे की पूरी कॉंग्रेस पार्टी नही टिकती और इसका जवाब गुजरात मे मिल चुका है!!!! ! जY हिन्द !

Saturday 25 August 2012

आसाम दंगों के बहाने अजमल अपनी राजनीति कर रहे हैं.

आसाम दंगों के बहाने अजमल अपनी राजनीति कर रहे हैं.


ये अजमल कसाब तो नहीं है लेकिन इनका काम अजमल कसाब से भी खतरनाक है. इनका नाम है बदरुद्दीन अजमल कासिम. आसाम के एक स्थानीय पार्टी आल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष हैं और धुबरी से लोकसभा का प्रतनिधित्व करते हैं. आसाम का वही धुबरी जहां से आसाम के दंगों की शुरूआत हुई. धुबरी में 75 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है इसलिए बदरूद्दीन अजमल इस इलाके के बेताज बादशाह हैं.
आसाम में जो ताजा दंगे शुरू हुए उनके बारे में रपटें बताई गईं कि 19 जुलाई को कोकराझार में दो मुस्लिम छात्र नेताओं रातुल अहमद और सिद्दीक शेख पर हमला कर दिया जिसके बाद दंगे की शुरूआत हुई.
ये दोनों ही छात्र नेता एक अल्पसंख्यक मुस्लिम संगठन से जुड़े हुए थे जिसका नाम है आल आसाम माइनारिटी स्टूडेन्ट यूनियन. इस संस्था के बारे में इतना ही जानना काफी है कि वह आसाम में मुसलमानों के हित के लिए काम करती है. इसी छात्र संगठन पर तथाकथित बोडो नेताओं के हमले के बाद रातों रात प्रतिक्रियावाद और बदला लेने की जो शुरूआत हुई उसका परिणाम यह हुआ कि 20 जुलाई को आसाम का कोकराझार, धुबरी इलाका पूरी तरह से जल उठा. हजारों लोगों को उनके घरों से या तो बाहर निकाल दिया गया या फिर वे अपने घरों को छोड़कर अज्ञात स्थान की ओर आगे बढ़ गये. 
यह खबर तो आई लेकिन यह खबर दब गई कि बोडो चरमपंथियों ने इन छात्र नेताओं पर हमला क्यों किया? यह जानकारी बहुत कम सामने आ पाई कि असम में जून महीने से ही बोडो लोगों पर छुटपुट हमले हो रहे थे. आज शरणार्थी शिविरों में जो लोग रहे हैं उसमें कई लोगों ने स्वीकार किया है कि उनके ऊपर मुस्लिम दंगाइयों ने जून में हमला किया था और उनके घरों को आग लगा दी थी.
आसाम से लौटकर आई एक फैक्ट फाइंडिग कमेटी ने 10 अगस्त को जो रिपोर्ट सार्वजनिक किया उसके अनुसार आसाम में दंगों की आग भड़काने में कांग्रेस के तीन मुस्लिम मंत्री जिम्मेदार हैं. इसके साथ ही इस फैक्ट फाइडिंग कमेटी ने दो सांसदों को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है. इनके नाम हैं रानी नारा और बदरूद्दीन अजमल. कांग्रेस के मंत्रियों और शीर्ष नेताओं की राजनीति बाद में पहले जरा बदरुद्दीन महाशय के बारे में.
बदरुद्दीन ही वह शख्स हैं जिनके प्रभाव के कारण पूरे देश के मुसलमानों में गुस्से की लहर दौड़ गई है. मुंबई में दंगा भड़कते भड़कते रह गया. लखनऊ और इलाहाबाद में स्थितियां तनावपूर्ण बन चुकी हैं. हैदराबाद में 18 अगस्त को मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ने एक बड़ी रैली आयोजित करके आसाम के मुसलमानों के लिए पूरे मुस्लिम समाज से सहयोग करने की अपील की. अगर अंदर ही अंदर देशभर में मुस्लिम संगठन आसाम दंगों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और रहकर उनका गुस्सा फूट रहा है तो स्वाभाविक तौर पर सवाल उठता है कि आखिर आसाम दंगों के बारे में वे जानकारियां मुसलमानों तक कैसे पहुंच रही हैं जो मीडिया से भी नदारद हैं? यह अजमल की कद काठी का कमाल है जो कि आसाम में अतरवाले के नाम से भी जाने जाते हैं. यह अतरवाला अजमल आज की तारीख में न सिर्फ आसाम का रसूखदार और पैसेवाला मुसलमान है बल्कि उसका शिक्षा कारोबार आसाम से लेकर मुंबई तक फैला हुआ है. शिक्षा के कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने बाकायदा एक एनजीओ मरकज उल मआरीफ बना रखा है. वे देवबंद की केन्द्रीय सलाहकार परिषद में भी हैं तो जमात-ए-उलमा-ए-हिन्द की सेन्ट्रल वर्किंग कमेटी के भी मेम्बर हैं. अजमल अपने इन्हीं संबंधों का फायदा उठा रहे हैं उनके दिये संदेशों को देश के दो बड़े मुस्लिम संस्थान अपने अपने संपर्कों के जरिए शेष देश के मुसलमानों में पहुंचा रही हैं और मुसलमान आसाम के सवाल पर उद्वेलित हो रहा है. 

लेकिन इस आर्थिक और धार्मिक ताकत के अलावा भी अजमल आसाम में अपने लिए मजबूत राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं. फिलहाल तो उनकी अपनी राजनीतिक पार्टी है और वे उनकी पार्टी यूपीए का एक घटक दल भी है जो केन्द्र में कांग्रेस को सपोर्ट कर रहा है जबकि राज्य में वह मुख्य विपक्षी दल है. कांग्रेस के अंदर तरुण गोगोई का धड़ा अजमल के खिलाफ रहता है. गोगोई और अजमल का यह विरोध 2001 से चल रहा है जब गोगोई ने अजमल की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था. अजमल वैसे तो सबके सामने तरुण गोगोई को अपना दोस्त बताते हैं लेकिन अंदरखाने वे सोनिया गांधी को जब तब अप्रोच करके गोगोई को हटाने की सिफारिशें करते रहते हैं. क्योंकि वे जमात-ए-उलमा-ए-हिन्द के सेन्ट्रल वर्किंग कमेटी के मेम्बर है जिसका सोनिया गांधी पर अच्छा प्रभाव है इसलिए सोनिया दरबार में अजमल गोगोई का राजनीतिक गला घोटने की कई बार कोशिश कर चुका है. लेकिन अब तक वह असफल ही रहा है.
इस बार भी आसाम दंगों के बहाने अजमल अपनी राजनीति कर रहे हैं. कांग्रेस में इन दिनों अजमल हिमन्त शर्मा के करीबी हैं. हिमन्त शर्मा कुछ महीनों पहले तक तरुण गोगोई के सबसे खास मंत्री हुआ करते थे लेकिन हिमन्त को मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब आने लगे. हो सकता है अजमल ने हिमन्त को यह ख्वाब दिखाया हो, या कारण कुछ और हो लेकिन हिमन्त शर्मा अपने राजनीतिक आका दिग्विजय सिंह के जरिए तरुण गोगोई को हटाकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बनाने लगे. आसाम से लेकर दिल्ली तक दबाव बढ़ता जा रहा था. दवाब कितना जबर्दस्त था कि दंगों के बाद कोकराझार के दौरे पर गये दिग्विजय सिंह ने कह दिया दंगों में राहत काम के लिए 2001 की जनगणना को नहीं बल्कि 2011 की जनगणना को आधार बनाया जाएगा. इसके बाद हालात और बिगड़ गये. निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह ने यह बयान मुस्लिम नेताओं को खुश करने के लिए दिया था जिसका की असमी जनता पहले से विरोध कर रही थी. लेकिन क्योंकि असम से लेकर देश के दूसरे प्रदेशों में अजमल कांग्रेस से वोटों का सौदा कर रहा था इसलिए यह सच्चाई जानते हुए कि असम के लोगों को यह बात नहीं भायेगी, दिग्विजय सिंह ने कम्युनल पॉलिटिक्स का दामन नहीं छोड़ा. इसके अलावा ऐसे और कई कारण है जो असम में कांग्रेस और अजमल की कम्युनल जोड़ी बनाते हैं. अजमल कासिम लगातार दबाव बनाता रहा है कि बोडोलैण्ड टेरिटोरियल काउंसिल भंग कर दिया जाए जो कि बोडो लोगों को विशेष अधिकार देती है. लेकिन गोगोई के विरोध के कारण इस बारे में बात आगे नहीं जा पाती है.
शायद यही कारण है कि अजमल ने एक तरफ जहां तरुण गोगोई को कमजोर करने के लिए उन्हीं के विश्वासपात्र हिमन्त शर्मा को आगे बढ़ाया वहीं दूसरी ओर अपने संबंधों और संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए कांग्रेस की वोटबैंक की राजनीति का सौदा भी करता रहा. यह तो भला हो सोनिया गांधी का जिन्होंने दबाव के बाद भी अपने असम दौरे के दौरान तरुण गोगोई को हटाने से मना कर दिया. इसके बाद से ही हिमन्त शर्मा अपने दफ्तर नहीं आ रहे हैं जिसके बाद इस बात की अफवाह फैली है कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है. हालांकि आधिकारिक तौर पर उनके इस्तीफे की कोई पुष्टि नहीं हुई है. बल्कि कांग्रेस के अंदर से ये खबरें जरूर बाहर आई हैं कि गोगई से गृह मंत्रालय वापस लेकर किसी और को यह जिम्मा दिया जा सकता है क्योंकि अभी गोगोई के पास गृह मंत्रालय के साथ साथ वित्त मंत्रालय भी है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि आसाम में वर्तमान दंगों के इतिहास में कांग्रेस की मुस्लिमपरस्त राजनीति ही नजर आती रही है. लेकिन दंगों के बीच भी कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कम नहीं हुई. यह नहीं हो सकता कि दिग्विजय सिंह को न पता हो कि अजमल कासिम आसाम में क्या चाहता है? फिर भी वे हिमन्त शर्मा के जरिए अजमल कासिम को पनाह दे रहे हैं तो कांग्रेस की कम्युनल पॉलिटिक्स की ही पोल खुलती है. असम में बोडो और मुस्लिमों के बीच जमीन का संघर्ष पांच दशक से भी अधिक पुराना हो गया है. यह बोडो लोगों का दुर्भाग्य ही है कि भूटान और नेपाल के बीच वे लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं, शायद यही कारण है कि वे अपनी खोती जमीन को बचाने के लिए एक बार हिंसक हो चले हैं. लेकिन कांग्रेस क्या कर रही है? अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए वह एक ऐसे आदमी को बढ़ावा दे रही है जो प्रदेश की सत्ता को अपने कब्जे में लेना चाहती है. अजमल खुद कहता रहा है कि गोगोई उसकी पार्टी को नेस्तनाबूत करना चाहते हैं. जाहिर है, इसके बाद वह भी गोगोई को चैन से कहां बैठने देगा? तो क्या अब वक्त नहीं है कि कांग्रेस अगर सचमुच राज्य में शांति चाहती है तो अपने मुख्यमंत्री का साथ दे और उस अजमल पर लगाम लगाये जो कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहा है लेकिन इसका खामियाजा पूरे आसाम को भुगतना पड़ रहा है

Friday 17 August 2012

असम की आग यूपी में भड़की: बलवाइयों ने महिलाओं के कपड़े तक फाड़े


असम की आग यूपी में भड़की: बलवाइयों ने महिलाओं के कपड़े तक फाड़े


असम और म्यांमार में हुई हिंसा के विरोध में शुक्रवार को एक खास समुदाय के लोग यूपी में भी सड़कों पर उतर गए। 

 अलविदा की नमाज के बाद लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद में भीड़ ने जम कर उत्‍पात मचाया। उपद्रवियों ने जम कर ईंट-पत्थर बरसाए, तोड़फोड़ और लूटपाट की। जम्मू-कश्मीर में भी मस्जिद से निकले युवाओं ने पुलिस पर पथराव किया जिसमें दो पुलिसकर्मियों समेत सात लोग घायल हुए। 


लखनऊ में बुद्ध पार्क घूमने गई महिलाओं को घेरकर उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए। शांति और अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की मूर्ति को भी नहीं बख्‍शा गया। स्थिति बिगड़ने की आशंका से रात में इलाहाबाद के कोतवाली थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया है। पूरे उत्तर प्रदेश में हाई अलर्ट है।

 लखनऊ में नमाज के बाद पक्का पुल से हंगामा शुरू हुआ। टीलेवाली मस्जिद व आसफी इमामबाड़े में अलविदा की नमाज के बाद लोगों ने विधान भवन की ओर कूच कर दिया और वहां तोड़फोड़ की।
पुलिस-प्रशासन को इसकी आशंका तक नहीं थी, क्‍योंकि अधिकारी जब तक माजरा समझ पाते तब तक करीब एक हजार प्रदर्शनकारी गौतम बुद्ध पार्क पहुंच गए। कुछ ने पार्क की रेलिंग तोड़नी शुरू की तो कुछ ने स्वतंत्रता दिवस पर लगाई झालरों को नोच डाला। 



इसके बाद सैकड़ों लोग पार्क में कूद गए और टिकट खिड़की पर तोड़फोड़ कर पार्क में मौजूद पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और कर्मचारियों को पीटने लगे। कुछ महिला पर्यटकों के कपड़े भी फाड़ दिए गए। कई गाड़ियां भी तोड़ दी गईं |

 for more detail on Danik Bhaskar, click here :

http://www.bhaskar.com/article/NAT-violence-in-up-3664966-NOR.html?next=y&img=&seq=6&imgname=#photo_bm


क्या मुंबई पुलिस पर शहर में दंगा करने वाले लोगों को गिरफ्तार न करने का दबाव था?

क्या मुंबई पुलिस  शहर में दंगा करने वाले लोगों को गिरफ्तार न करने का दबाव था? 


दंगे के दौरान एक शख्स को गिरफ्तार करने वाले डीसीपी पर मुंबई पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक जिस तरह भड़के उससे तो यही लगता है। कमिश्नर ने डीसीपी को जम
कर झाड़ लगाई और उस शख्स को छोड़ने का आदेश दिया।

 इसके अलावा अमर जवान ज्योति स्मारक को लात मारकर क्षति पहुंचाने वाले शख्स की पहचान होने के बाद भी उसकी गिरफ्तारी न
हीं किए जाने से मुंबई पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं।

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लगता तो ये ही है की यह धर्म निरपेक्ष सरकार के निर्देश थे क्योकि सत्ता मे रहने के लिए इनको अवैध बांग्लादेशियो के वोटो की ज़रूरत है | ये लोग सत्ता मे रहने के लिए पाकिस्तानियो से भी कोई सौदेबाज़ी करने मे हिचकिचाएंगे नही
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न्यूज चैनल्स पर दिखाए गए और यू-ट्यूब पर अपलोड किए गए एक विडियो के मुताबिक, एक दंगाई को जब डीसीपी डीसीपी रवींद्र शिश्वे ने गिरफ्तार किया तो उनपर कमिश्नर पटनायक भड़क गए।

 पटनायक ने कहा, 'इसे गिरफ्तार करने के लिए आपको किसने बोला?' पटनायक यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने डीसीपी को सस्पेंड करने की धमकी भी दे डाली। पटनायक ने कहा, 'आप सांगली के एसपी नहीं हैं, आप मुंबई के डीसीपी हैं। आपको जो कहा जा रहा है, उसे फॉलो कीजिए, नहीं तो सस्पेंड कर दिए जाएंगे।' उन्होंने डीसीपी को यह भी कहा कि मैं मुंबई का पुलिस कमिश्नर हूं और आप मेरे निर्देशों का पालन कीजिए। इसके बाद डीसीपी ने उस शख्स को छोड़ दिया।



हिन्दुत्ववादी संगठन करती ऐसी उत्पात तो मिडिया पता नहीं कितने दिन छाती पिटती ?
किस पार्टी का नेता नहीं बौखलाता ...देश का कौन सा सुरक्षा एजेंसी कुत्तो के तरह पीछे नहीं लग जाता ?
अब क्या हुआ मुल्लो के उत्पात पर चुप क्यों है मिडिया और राजनीती म
ाफिया ?

मिडिया जब मार खाती है तो ऐसे ही चुप्पी साधती है सेकुलर मिडिया के अम्मी बहन क्या मुल्लो के रखैल है ?
जो मुल्लो के उत्पात पर आँखें बंद कर लेती है .....और अगर हिन्दू करे तो जो मयूजिक पर इनकी अम्मी बहन
मुजरा करते है वही म्यूजिक के साथ हमारी खबर दिखाते है ......निष्पक्ष मिडिया इसी को कहते है ?
पुलिस वाले कश्मीर से कन्याकुमारी तक मुल्लो से ही मार खाते है .............इनका अफसर नताओ के आगे
कुत्ते के तरह पूछ जो हिलाते है ...
मुंबई पुलिस पर दंगाइयों को गिरफ्तार न करने का दबाव था?
http://navbharattimes.indiatimes.com/mumbai-top-cops-you-tube-trouble/articleshow/15512477.cms