Wednesday 4 July 2012

बड़े ही फलदायक हैं श्रावण सोमवार व्रत

बड़े ही फलदायक हैं श्रावण सोमवार व्रत

श्रावण मास में भगवान त्रिलोकीनाथ, डमरुधर भगवान शिवशंकर की पूजा अर्चना का बहुत अधिक महत्व है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए श्रावण मास में भक्त लोग उनका अनेकों प्रकार से पूजन अभिषेक करते हैं। भगवान भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होने वाले देव हैं। वह प्रसन्न होकर भक्तों की इच्छा पूर्ण करते हैं।

इस बार श्रावण मास में 9, 16, 23 और 30 जुलाई को सोमवार व्रत हैं। श्रावण मास के इन समस्त सोमवारों के दिन व्रत लेने से पूरे साल भर के सोमवार व्रत का पुण्य मिलता है। सोमवार के व्रत के दिन प्रातः काल ही स्नान ध्यान के उपरांत मंदिर देवालय या घर पर श्री गणेश जी की पूजा के साथ शिव पार्वती और नंदी बैल की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, जनेऊ, चंदन, रोली, बेल पत्र, भांग, धतूरा, धूप, दीप और दक्षिणा के साथ ही नंदी बैल के लिए चारा या आटे की पिन्नी बनाकर भगवान पशुपतिनाथ का पूजन किया जाता है।

रात्रिकाल में घी और कपूर सहित धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। सुहागन स्त्रियों को इस दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। विद्यार्थियों को सोमवार का व्रत रखने से और शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। बेरोजगार और अकर्मण्य जातकों को रोजगार और काम मिलने से मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।

सदगृहस्थ नौकरी पेशा या व्यापारी को श्रावण के सोमवार व्रत करने से धन धान्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है। प्रौढ़ तथा वृद्ध जातक अगर सोमवार का व्रत रख सकते हैं तो उन्हें इस लोक और परलोक में सुख सुविधा और आराम मिलता है। सोमवार के व्रत के दिन गंगाजल से स्नान करना और देवालय तथा शिव मंदिर में जल चढ़ाना आज भी उत्तर भारत में कांवड़ परंपरा का सूत्रपात करती हैं।

अविवाहित महिलाएं अनुकूल वर के लिए श्रावण के सोमवार का व्रत धारण कर सकती हैं। सुहागन महिला अपने पति एवं पुत्र की रक्षा के लिए, कुंवारी कन्या इच्छित वर प्राप्ति के लिए एवं अपने भाई, पिता की उन्नति के लिए पूरी श्रद्धा के साथ व्रत धारण करती हैं। श्रावण व्रत कुल वृद्धि के लिए, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए, सम्मान के लिए भी किया जाता है।

इस व्रत में माता पार्वती और शिवजी का पूजन किया जाता है। शिवजी की पूजा-अराधना में गंगाजल से स्नान और भस्म अर्पण का विशेष महत्त्व है। पूजा में धतूरे के फूलों, बेलपत्र, धतूरे के फल, सफेद चन्दन, भस्म आदि का प्रयोग अनिवार्य है।

सुबह स्नान करके, सफेद वस्त्र धारण कर काम क्रोध आदि का त्याग करें। सुगंधित श्वेत पुष्प लाकर भगवान का पूजन करें। नैवेद्य में अभिष्ट अन्न के बने हुए पदार्थ अर्पण करें। फिर...
ओम नमो दशभुजाय त्रिनेत्राय पन्चवदनाय शूलिने। श्वेतवृषभारुढ़ाय सर्वाभरणभूषिताय। उमादेहार्धस्थाय नमस्ते सर्वमूर्तयेनमः... इन मंत्रो से पूजा व हवन करें। ऐसा करने से सम्पूर्ण कार्य सिद्ध होते हैं।

No comments:

Post a Comment