Friday 15 June 2012

अब नहीं रही दिल्ली दिलवालों की

अब नहीं रही दिल्ली दिलवालों की

पहले यह कहावत बेहद प्रचलित थी कि दिल्ली दिल वालों की, मुंबई पैसे वालों की यानी दिल्ली जो भ
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ी आता था उसे गुजर-बसर करने के लिए दो वक्त की रोटी और रात गुजारने के लिए आशियाना आसानी से मयस्सर हो जाता था। लेकिन हाल के कुछ बर्षों में बढ़ती महंगाई और सरकार की जन विरोधी नीतियों ने कम आय वाले लोगों को दिल्ली से भागने के लिए मजबूर कर दिया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को पैसे वालों का सेफ जोन कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जनता के द्वारा और जनता के लिए चुनी गई सरकार ने दिल्ली से गरीब लोगों को भगाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए।


कल कारखानों को हटानाः पहले दिल्ली और आस-पास के इलाकों में छोटे मोटे कई कारखाने हुआ करते थे। इन कारखानों में देश भर से उन इलाकों के लोग काम करने आते थे जहां रोजगार के कोई साधन उपलब्ध नहीं होते थे। जिनसे उनके परिवार का भरण-पोषण होता था। पर्यावरण के नाम पर इन कारखानों को दिल्ली से निकाल दिया गया। जिससे हजारों लोगों का रोजगार छिन गया और उसे दिल्ली छोड़कर जाना पड़ा। पर गौर करने वाली बात यह है कि प्रदूशण फैलाने वाली डीजल और पेट्रोल की गाड़ियां दिल्ली में इस कदर बढ़ीं कि आज चारों महानगरों की गाड़ियों की संख्या से भी ज्यादा दिल्ली में गाड़ियां हैं। 


कॉमनवेल्थ खेलों के नाम पर: खेलों को किसी भी राष्ट्र की समृद्धि के रूप में देखा जाता है। जो देश जितना शक्तिशाली और समृद्ध होता है उस देश का खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खेलों में उतना ही ज्यादा मेडल अपने देश के लिए जीतता है। इससे पता चलता है कि उस देश के आमलोगों का जीवन स्तर कितना ऊंचा है। वर्ष 2010 में भारत को पहली बार कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजित करने का अवसर मिला। इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के गेम्स का आयोजन देश की राजधानी दिल्ली में किया गया। देश की प्रतिष्ठा बचाने के लिए लोकतांत्रिक सरकार ने दिल्ली से गरीबों को खदेड़ना शुरू किया। जो लोग नदियों के किनारे या गंदे नाले-नालियों के पास झुग्गी-झोपड़ियां बनाकर रह रहे थे। उनके आशियानों पर बुल्डोजर चलाकर उन्हें यहां से बेदखल कर दिया गया।


कॉमनवेल्थ गेम्स का टैक्सः दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में आम जनता की एक लाख 76 हजार करोड़ की गाढ़ी कमाई फूंक दी गई। इस बंदरबाट का खुलासा सीएजी की रिपोर्ट में हुआ उसके बाद गेम्स के कर्ताधर्ता सुरेश कलमाडी को अनियमितता के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी। ये तो रहा, रुपये की लूट का खेल लेकिन उसके बाद गेम्स के ऊपर किए गए खर्चों की उगाही के लिए आम जनता पर टैक्स बढ़ा दिया गया। सीएनजी, गैस, पेट्रोल से लेकर खाने-पीने और पहनने की चीजों पर बेतहाशा टैक्स की बढ़ोतरी की गई। इससे महंगाई आसमान छूने लगी और कई परिवारों का दिल्ली छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।


परिवहन किराए में बढ़ोतरीः दिल्ली में डीटीसी बसों के किराए में एकाएक कई गुना वृद्धि की गई। मेट्रो किराए में भी वृद्धि की गई। इतना ही नहीं डीटीसी बसों में एसी बसों की संख्या बढ़ा दी गई। इसके बाद सरकार की जो साजिश शुरू हुई उसे जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। एसी बसों को उन रूटों पर भी ज्यादा चलाया गया जिस पर बहुत ही कम आय वाले लोग सफर करते हैं। ऑफिस जाने के समय अगर आप बस स्टॉप पर खड़े होकर नॉन एसी बसों का इंतजार कर रहे हैं तो आप इंतजार करते रह जाएंगे। ज्यादातर एसी बसें आपके सामने से होकर गुजरेंगी, इक्का-दुक्का नॉन एसी बसें ही देखने को मिलेंगी। ऐसा इसलिए किया जाता है कि जनता से सरकार ज्यादा से ज्यादा राजस्व हासिल कर सके। इसके साथ ही गरीब जनता परेशान होकर दिल्ली छोड़ दे। 


महंगा घरः आम लोगों को दिल्ली में घर सपना ही होता है फिर भी अपनी मेहनत की कमाई से तिनका-तिनका जोड़ कर कुछ लोग ही घर खरीदने में सक्षम हो पाते हैं। लेकिन आश्चर्य तब होता है जिस घर की कीमत पांच लाख रुपए होनी चाहिए उस घर की कीमत 40 से 50 लाख रुपए तक देना पड़ती है। इससे सिर्फ बिल्डरों को फायदा होता है। जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं देती। जो लोग घर नहीं खरीद पाते हैं उन्हें किराए के मकान में रहना पड़ता है। किराया भी हर साल इस रफ्तार से बढ़ता है कि लोगों को आधी कमाई किराए में निकल जाती है।


केंद्र सरकार और दिल्ली की इन साजिशों के चलते कम आय वाले लोगों को दिल्ली से भागने पर मजबूर होना पड़ रहा है। दिल्ली को अमीरों के लिए सेफ जोन बनाया जा रहा है। यों कहें कि परोक्ष रूप से गरीबों को भगाने की तैयारी है। 

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