Tuesday 12 June 2012

चार शादियाँ और इस्लामी तर्क



चार शादियाँ और इस्लामी तर्क

बहुपत्नी प्रथा इस्लामिक समाज में पाई जाने वाली एक ऐसी कुप्रथा है जिसे मुसलमान अपना जनमसिद्ध अधिकार समझते है. भारत समेत दुनिया कि बहुत सी सरकारे जो सेक्युलर होने का दम भरती है, इस मुद्दे पर इस्लामिक कट्टरपंथियो के आगे हथियार डाल चुकी है. भारत में तो हालात इस हद तक खराब है कि समान आचार सहिता कि बात करने वालो को ही संप्रदयवादी कह कर दुत्कार दिया जाता है.

गैर मुस्लिम के लिए ये जानना बड़ा दिलचस्प है कि मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी इस जाहिल और महिला विरोधी रिवाज़ के पक्ष में क्या दलीले देते है? ज़ाकिर नाईक जैसे अनेक मुस्लिम विचारक तर्क देते है कि दुनिया के सभी धर्मो में बहुपत्नी प्रथा पाई जाती है. राजा दशरथ कि 3, ओर श्री कृष्णा की 16108 पत्निया थी. यहूदी, पारसी ओर ईसाई धरम में भी एक शादी जैसी कोई पाबंदी नही है.केवल क़ुरान में ही शादियो की अधिकतम सीमा तय की गयी है. यानी ये साफ है कि बाकी धर्मो के लोगो ने अपने प्राचीन रिवाज़ो को नये समय के साथ बदला है. सिर्फ़ मुसलमान ही ऐसा नही कर पाए वे आज भी सड़ी गली प्रथा से चिपके हुए हैं.

इनका दूसरा तर्क है कि दुनिया में औरतो की तादात मर्दो से ज़्यादा है. इससे बदतर कोई तर्क नही हो सकता. युरोप के कुछ देशो में महिलाओ की तादात भले ही अधिक है लेकिन वह चार गुना जीतने स्तर पर नही है. दुनिया में सेक्स रेशियो 100:101 है. सबसे अजीब बात तो ये है कि जिन देशो में महिलाओ कि तादात कुछ अधिक है वहाँ तो बहुपत्नी प्रथा गैर क़ानूनी है, जबकि ज़्यादातर इस्लामिक देशो में, महिलाओं की तादात पुरुषो से कम है. साओदी अरब में तो 100 पुरुषो के अनुपात में सिर्फ़ 85 महिलाए ही है.

यही हाल ज़्यादातर मुस्लिम देशो का है. इस्लामिक विद्वान अमेरिका रशिया आदि का तो सेक्स रेशियो बताते है पर बड़ी मक्कारी से मुस्लिम देशो का सेक्स रेशियो छिपा लेते है. भारत में पुरुषो की तादाद कम होने का कारण कन्या भ्रूण हत्या हो सकता है, पर मुस्लिम देशों में महिलाओ कि संख्या इतनी कम क्यो है? कुल मिला कर ये तर्क बिल्कुल बकवास है कि दुनिया में महिलाओ कि संख्या इतनी अधिक है कि पुरुष 4 शादी की छूट ज़रूरी है.

कारण केवल एक है कि जहां बाकी समाज पुरानी ज़ंज़ीरो को तोड़ कर नयी जीवनशैली को अपना चुके हैं , वहीं मुसलमान अब भी रूढ़िवादी सोच के गुलाम है |

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